Description
इसके सेवन से प्रमेह रोग नष्ट होते हैं मूत्र की वृद्धि होती है तथा शारीरिक क्रांति अच्छी बन जाती है यह पौष्टिक बल वर्धक तथा अग्नि प्रदीप है वात पित्त प्रधान रोगों में इसका प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है शुक्र विकार जैसे धातु की कमजोरी स्वपन दोष हो जाना पेशाब के साथ धातु जाना आदि विकारों में इसका निर्भय होकर उपयोग करना चाहिए इसके अतिरिक्त वात के कारण शरीर में दर्द हो तो इसमें भी यह दावा बहुत लाभकारी है इसका असर वृक और शुक्राचार्य तथा वात वाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है अतः यह उक्त रोगों में लाभ करता है
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